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क्या खेल अब खेल की भावना से खेला जाता है या इसको इसको रुपए की भावना से खेला जाता है अगर हम चलेंगे तो हमारे पास रुपया भी आएगा जो कि सहवाग विज्ञापन में कहते हैं जब तक बल्ला चल रहा है तब तक ठाठ हैं और क्या ठाठ हैं चाहें धोनी का बल्ला चले तो ठाठ हैं या सचिन का चले या किसी और का चले तो ठाठ हैं। आते तो सबके पास रुपए ही है चाहें जैसे ही आए। क्योंकि देश तो यह उम्मीद लगाए रहता है कि यह इस मैच में हमारी भावना को समझेंगे और देश को जीत हासिल करवाएंगे लेकिन यह सिर्फ भावनाओं को कुछ नहीं समझते सिर्फ वहां मौज मस्ती करने जाते हैं और हार जाते हैं। देश तो यह चाहता है कि इंडिया की टीम पूरे संसार में अव्वल रहे और नंबर एक की पोजीशन पर बरकरार रहे लेकिन इस टेस्ट मैच ने तो हद ही कर दी। हम जो नंबर एक की पोजीशन पर विद्यमान थे वह भी अब डामाडोल नजर आ रही है। इन लोगों ने यह सोच रखा है कि दस में से सिर्फ दो मैचों में ही अच्छा प्रदर्शन कर वाह वाही लूटनी है और देश को इस खेल भावना में फिर आगे के मैचों के लिए जागृत करना है।
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