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जे डे का मरना एक खबर भर नहीं जिसे देखकर या पढकर उसे खबर ही मान लिया जाए और पत्रकारों को भी अपनी सुरक्षा के बारे में सोचना होगा अगर सुरक्षा के विषय में नहीं सेाचेंगे तो उनको भी जे डे जैसे वरिष्ठ पत्रकार की तरह उनका भी अंजाम हो सकता है जहां वह कुछ भी नहीं कर पाएंगे यहां मीडिया को लोकतंत्र् का चौथा स्तंसभ कहा जाता है लेकिन उसी चौथे स्तंगभ के लोगों पर ही इस तरह की दुर्घटना घटित हो जाती है तो हमारे चौथे स्तंसभ को हिलाने की कोशिश की जा रही है जिसको यह पत्रकार समूह कभी बर्दाश्त् नहीं कर पाएगा और बर्दाश्त करना भी नहीं चाहिए अगर मुंबई के पत्रकार एक रैली निकाल सकते हैं तो क्यान हुआ पूरे भारत के पत्रकार समूह को उठ खडा होना चाहिए और इसको अन्नाक के अनशन की तरह इसको पूरे देश व सरकार के साथ साथ उन असमाजिक तत्वोंइ को भी दिखाना होगा जिससे यह सबको पता लग सके कि हम अभी भी हर खबर को खबर न देखकर उसे अपना मानते हैं और हम चाहें तो सब कुछ बदल सकते हैंI
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